मैं चाहूँ तो भी तुम तक नहीं आ सकती ,
कभी तुम ही इस ओर तक लिया करो,
इतनी ऊंचाई से मैं तुम्हे दिखती हूँ न ?
तुम मेरे मन की गहराइयों को समझ पा
रहे हो न......................................
ऐ आकाश तुम बरसा दो वो बूंदे
स्वाति नक्षत्र में जिन्हें में
समेट लूँ अपने भीतर और बना दूँ
उन्हें प्यार का मोति.............