शनिवार, 26 जुलाई 2014

aakash




ऐ आकाश तुम इतने ऊँचे हो क्यों ?
मैं चाहूँ तो भी तुम तक नहीं आ सकती ,
कभी तुम ही इस ओर तक लिया करो,
इतनी ऊंचाई से मैं तुम्हे दिखती हूँ न ?
 तुम मेरे मन की गहराइयों को समझ पा
रहे हो न......................................
ऐ आकाश तुम बरसा दो वो बूंदे
स्वाति नक्षत्र में जिन्हें में
समेट लूँ अपने भीतर और बना दूँ
उन्हें प्यार का मोति............. 

शनिवार, 3 जुलाई 2010

आम आदमी

"आम आदमी" आज हर कोई ये समझता है की जो महंगाई
की मार झेल रहा है , वो आम आदमी है,परन्तु सच्चाई इससे कहीं हट कर है आज भी कई ऐसे लोग है जो गरीबी रेखा से नीचे जीवन व्यतीत कर रहे हैं अब उनकी गिनती किसमे होगी आम आदमी की केटेगरी में या फिर गरीबों में ये भी अभी तक निश्चित नहीं हो पाया है , भगवान ही जाने की हमारे भारत देश की ये समस्या कभी सुलझ भी पायेगी या नहीं जबसे हमें आज़ादी मिली है तब से लेकर आज तक समस्या वही की वही पहले अंग्रेज़ हम पर राज़ करते थे और अब इन गरीबों पर अमीरों का शासन है , आज भी इन लोगो की स्थिति वैसी की वैसी है सच तो ये है की ये लोग पहले भी गुलाम थे और आज भी गुलाम हैं, इन्हें तो आज़ादी की ख़ुशी ही नहीं , आज के इस दौर में महंगाई नाम की डायन ने सबको अपना शिकार बना रखा है, लेकिन ये जो दिन रात कचरे के ढेर पर अपनी रोज़ी रोटी तलाशते हैं इन्हें क्या पता की कब महंगाई बढ़ रही है या कब घट रही है , लेकिन हाँ ये बात तो बिलकुल सच है महंगाई बढ़ तो जरुर रही है , कितनी अजीब बात है आज भी कहीं कहीं हमारे देश की स्थिति वैसी की वैसी है ,हमारे देश में बहरत की पहचान एक गरीब देश के रूप में दी जाती है एक तरफ भारत एक महाशक्ति के रूप में उभर रहा है वहीँ दूसरी तरफ भारत की ये तस्वीर भी किसी से छुपी नहीं है, आज भी कितने ही लोग भुखमरी के शिकार हो रहे हैं फिर हम ये कैसे कह सकते हैं की भारत एक संपूर्ण शक्ति बन चुका है क्यूंकि आज भी जाने कितनी बच्चों का भविष्य बल मजदूरी करने में कहीं खो जाता है और आम आदमी सबसे आम बनाकर ही रह गया है वो आम आदमी जिसे आम होने का मतलब भी नहीं पता

गुरुवार, 11 फ़रवरी 2010

हमारा क्या कसूर

मैं अक्सर यह सोचती हूँ की क्या लड़कियां हमेशा ही दुःख तकलीफें झेलती रहेगी क्या कभी उन्हें इन तकलीफों से मुक्ति नहीं मिलेगी , आखिर कब तक इन्हें रोंदा जायेगा बीते दिनों ऐसी कई घटनाएँ हमारे समक्ष प्रस्तुत हुई है की अंदाजा लगाया जा सकता है , की कितनी मासूमों को हवस का शिकार बना लिया जाता है , और डरा धमकाकर उनका मुंह बंद करवा दिया जाता है कोई ऐसा दिन नहीं जाता जब की समाचार पत्रों और टीवी की ख़बरों में लड़कियों के बेआबरू होने की ख़बरें न हो। आखिर कब तक इनको हैवानों की भेंट चढ़ना होगा,और कब इनके साथ इंसाफ होगा। आये दिन ऐसी कितनी ही मासूम इन राक्षसों का निवाला बन जाती है और सुरक्षा की गुहार भी किससे लगायी जाए जब सुरक्षा की आड़ में ही अपराध होता है। कभी गोवा में नौ साल की रुसी बच्ची के साथ बलात्कार होता है तो कहीं किसी और बच्ची को बेआबरू किया जाता है। लेकिन सवाल यह उठता है की क्या अब हमारे भारत देश में इन मासूमों से उनका बचपन भी छीन लिया जायेगा ,जिस देश में कन्या को देवी की तरह पूजा जाता हो वहां ऐसा घिनोना कृत्य होगा इसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी। नतीजा निकलता है तो केवल एक की आये दिन लड़कियां आत्मदाह कर लेती हैं। इन घटनाओं के खिलाफ़ आवाजें तो कई उठती हैं लेकिन इस पर उचित कारवाही कभी नहीं हटी है और वक़्त बीतने के साथ उन केसों को फाइलों में बंद कर दिया जाता है जिस आँगन में कभी हँसी ठिठोली गूंजती हों और वही आँगन जब सुना हो जाये तो उस बेटी के परिवार वालों पर क्या बीतती है इसका शायद हम आप अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते। आज के इस क्रूर समाज में केवल बेटियों को ही निशाना बनाया जाता है,फिर चाहे वो भ्रूण हत्या हो या फिर बलात्कार की शिकार कोई मासूम आखिर इसका क्या जवाब है की इन मासूमों को इन्साफ मिलेगा ही। आज हर लड़की के मन में यही पुकार है की कब तक उनका शोषण होता रहेगा, कब तक ?